यात्री ऊपर काला घना आसमान हजारों तारे जिसकी गोद में हर पल पैदा हो रहे और मर रहे हैं। आकाशगंगाओं की अनंत मालाएं बिखरी पड़ी हैं जहाँ वही कहीं, किसी कोने में बिछी हुई मेरी चारपाई और उसपर लेटा हुआ मैं झूलता हुआ अन्तरिक्ष में आधा सोया, आधा जागा हुआ थक कर चूर पड़ा हुआ कर रहा हूँ अपना सफ़र धीरे धीरे कि मैं ये जानता हूँ जाऊंगा नही कहीं अपनी धुरी पर घूमते घूमते यही चुक जाऊंगा मैं यही से आया था, यही रहा, और यही चला जाऊंगा।
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